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जानिए संपत्ति में क्या हैं मुस्लिम महिलाओं के अधिकार

जानिए संपत्ति में क्या हैं मुस्लिम महिलाओं के अधिकार

जानिए संपत्ति में क्या हैं मुस्लिम महिलाओं के अधिकार

भारतीय संविधान का आर्टिकल 14 सभी नागरिकों को समानता का हक देता है। सामाजिक और कानूनी ताकतों के बीच देश के हिंदू, मुस्लिम और ईसाइयों के कुछ निजी कानून भी होते हैं, जिसमें संपत्ति के अधिकार भी शामिल होते हैं। भारत में मुसलमानों के संपत्ति अधिकार सूचीबद्ध नहीं है। वह मुस्लिम कानून की दो संस्थाओं के तहत आते हैं-हनाफी और शिया। भारत में ज्यादातर मुस्लिम हनाफिस या सुन्नी हैं। हनाफी संस्था केवल उन रिश्तेदारों को वारिस के रूप में मानती है, जिनका पुरुष के माध्यम से मृतक से संबंध होता है। इसमें बेटे की बेटी, बेटे का बेटा और माता-पिता आते हैं। दूसरी ओर शिया संस्था एेसा कोई भेदभाव नहीं करती। इसका मतलब है कि जिन वारिसों का मृतक से संबंध महिलाओं के जरिए है, उन्हें भी अपना लिया जाता है।

महिलाओं के लिए विरासत के सामान्य नियम कुछ इस तरह हैं:

बेटी: मुस्लिम कानून के तहत विरासत के कानून काफी सख्त हैं। उनकी विचारधारा के मुताबिक महिलाओं को पुरुष से आधी तवज्जो मिलती है, इसलिए बेटों को बेटी के हिस्से से दोगुना मिलता है। लेकिन बेटी को जो भी संपत्ति विरासत में मिलेगी, उस पर उसका पूर्ण अधिकार होगा। अगर कोई भाई नहीं है तो उसे आधा हिस्सा मिलेगा। वह अपनी मर्जी से कानूनी तौर पर उसका प्रबंधन, नियंत्रण और निपटारा कर सकती है।

वह उन लोगों से भी गिफ्ट्स ले सकती है, जिनसे वह संपत्ति हासिल करेगी। यह विरोधाभासी है, क्योंकि वह पुरुष के हिस्से का केवल एक-तिहाई हिस्सा पा सकती है, लेकिन बावजूद इसके बिना किसी परेशानी के तोहफे ले सकती है। जब तक बेटी की शादी नहीं होती, उसे माता-पिता के घर में रहने और सहायता पाने का अधिकार है। लेकिन तलाक के मामले में इद्दत अवधि (करीब तीन महीने) के बाद रखरखाव का शुल्क उसके माता-पिता के पास वापस चला जाता है। लेकिन अगर महिला के बच्चे उसका सपोर्ट करने की स्थिति में हैं तो जिम्मेदारी उन पर आ जाती है।

पत्नी: मशहूर शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामले में कहा था कि मुस्लिम महिला कानून, 1986 (तलाकों के अधिकारों का संरक्षण) के सेक्शन 3 (1एचए) के मुताबिक अलग होने के बाद भी अपनी पूर्व पत्नी की देखभाल करने की जिम्मेदारी पति की है। यह अवधि इद्दत के भी परे है, क्योंकि महिला अपनी संपत्ति और सामान पर नियंत्रण रखती है।

पति की मृत्यु के मामले में विधवा को (अगर बच्चे हैं) एक आठवां हिस्सा मिलेगा। अगर बच्चे नहीं हैं तो एक चौथाई हिस्सा मिलेगा। वहीं अगर मृतक की एक से ज्यादा पत्नियां हैं तो हिस्सा एक-सोलहवें तक घट सकता है।

माता: अगर बच्चे अपने पैरों पर खड़ें हैं तो मुस्लिम माता को उनसे विरासत पाने का हक है। अगर बेटे की मौत हो जाए और उसके बच्चे भी हैं तो मृतक की मां को उसकी संपत्ति का एक-छठवां हिस्सा मिलेगा। लेकिन अगर पोते-पोतियां नहीं हैं तो महिला को एक-तिहाई हिस्सा मिलेगा।

और क्या?
कानून में कई एेसे प्रावधान किए गए हैं, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।

मेहर : यह वो पैसा या संपत्ति होती है, जो शादी के वक्त पत्नी अपने पति से पाने की हकदार होती है। मेहर दो तरह की होती हैं-तुरंत और देरी से। पहले मामले में पत्नी को शादी के तुरंत बाद पैसा दे दिया जाता है। जबकि दूसरे में शादी खत्म होने के बाद मिलता है, चाहे वह तलाक के कारण हो या पति की मौत की वजह से।

वसीयत: एक मुस्लिम पुरुष या औरत कुल संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा ही वसीयत के जरिए दे सकता/सकती है। अगर संपत्ति में कोई वारिस नहीं है तो पत्नी को वसीयत के जरिए ज्यादा राशि मिल सकती है।

हिबा: मुस्लिम कानून के तहत किसी भी तरह की संपत्ति को तोहफे के तौर पर दिया जा सकता है। एक गिफ्ट को वैध बनाने के लिए उसे तोहफा बनाने की घोषणा होनी चाहिए और रिसीवर द्वारा उसे स्वीकार किया जाना चाहिए।

Last Updated: Mon Jun 15 2020

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